पाकिस्तान और इंडिया का मैच शुरू होने वाला है दोनों मुल्कों के तराने चल रहे हैं क्राउड फुल चार्ज तारीख का सबसे बड़ा
मुकाबला बस शुरू ही होने वाला है लेकिन लेकिन यह क्या भारत के 11 और पाकिस्तान के
सिर्फ पांच खिलाड़ी पाकिस्तान तो मैच हार जाएगा जी हां क्योंकि पाकिस्तान को लेवल प्लेइंग
फील्ड नहीं मिली अब आप समझ गए होंगे कि लेवल प्लेइंग फील्ड क्या है लेकिन जब मैदान सियासत का हो तो यह बात किसी को समझ
नहीं आती इसलिए 1970 से लेकर आज तक के तमाम इले खोलकर समझाएगा रफ्तार तो
सब्सक्राइब करें फॉलो करें और लाइक और बेल आइकन का बटन जरूर दबा
दें पाकिस्तान 1947 में आजाद तो हो गया था मगर 9 साल तक मुल्क का कानून अंग्रेजों का
ही गुलाम रहा हमारे पास अपना आईन ही नहीं था पाकिस्तान अंग्रेजों के बनाए हुए गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 पर चलता
रहा फिर 1956 में आइन तो बन गया मगर इलेक्शन ना हो सके सियासी जमात फरवरी 1959
में इलेक्शन करवाना चाहती थी मगर इससे 4 महीने पहले ही अक्टूबर 1958 में जनरल अयूब खान ने मुल्क पर कब्जा कर लिया और 1962
में अपना ही आईन बना डाला नाम निहाद इलेक्शन भी करवाए मगर ये जनरल इलेक्शन
नहीं थे और यह कानून तब तक चलता रहा जब तक अयूब खान इक्दर्म रहे 1969 में जाते-जाते
भी वो हुकूमत एक और फौजी जनरल यया खान को दे गए जो फैसला करते हैं कि वो आवामी
नुमाइंदे को इक्त दार देंगे और मुल्क में इलेक्शन करवाएंगे यूं मुल्क में पहली बार जनरल इलेक्शन होते हैं पाकिस्तान बनने के
23 साल बाद जी हां इस मुल्क के आवाम ने अपनी जाने दी सब कुछ कुर्बान किया
अंग्रेजों से आजादी हासिल की मगर फिर भी 23 साल तक उन्हें अपनी मर्जी का हुक्मरान
चुनने का इख्तियार तक नहीं दिया गया और फिर वो दिन आ गया 17 दिसंबर
1970 पाकिस्तान के पहले आम इंतखाब का दिन लेकिन क्या इन इलेक्शन में लेवल प्लेइंग
फील्ड दी गई थी 1970 के इलेक्शंस पाकिस्तान की तारीख के वाहिद इंतखाब होंगे जिन्हें आमतौर पर लोग समझते हैं कि बहुत
शफाफ थे लेकिन यह हकीकत नहीं इन इलेक्शंस में भी लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं दी गई थी
पाकिस्तान की सबसे बड़ी पार्टी आवामी लीग पर बगावत का इल्जाम लगाया गया उनके रहनुमा शेख मुजीबुर रहमान को जेल में डाला गया
लेकिन यह सब करके भी उनकी मकबूल में कोई कमी नहीं लाई जा सकी फिर हुआ ये कि मगरिब पाकिस्तान में तो इलेक्शन मैनेज हो गए
लेकिन मशरिक पाकिस्तान में कौन करता मुजीबुर रहमान की आवामी लीग ने वहां से क्लीन स्वीप कर दिया था लेकिन उन्हें
मगरिब पाकिस्तान में एक सीट भी नहीं मिली जुल्फिकार अली भुट्टो की पीपल्स पार्टी ने मगरिब पाकिस्तान से 86 सीटें जीती लेकिन
उन्हें मशरिक पाकिस्तान से कुछ नहीं मिला मुजीब पर भी इल्जाम लगता है कि उन्होंने मशरिक पाकिस्तान में किसी की इलेक्शन
मुहिम नहीं चलने दी जो भी हो आवामी लीग को 300 के ऐवा में 167 सीटें मिल गई अब सादा
अक्सर मुजीब के पास थी हुकूमत बनाने का हक था उन्हें लेकिन उन्हें यह हक नहीं दिया
गया वो खींचातानी हुई कि बिलखिरिया तुम इधर हम हो
गया पाकिस्तान कैसे टूटा किसने तोड़ा इस मौजू पर रफ्तार ने वीडियोस बना रखी हैं लिंक डिस्क्रिप्शन में मौजूद है आप जरूर
[संगीत] देखिएगा मार्च 1977 के इब्तिदा दिन थे
इलेक्शन सेल के इंचार्ज और एक्स डायरेक्टर आईवी राव अब्दुल रशीद गहरी नींद सो रहे थे
रात 4:00 बजे उनके फोन की घंटी बजती है राव रशीद ने फोन उठाया तो सामने से
हेलो की आवाज ने उनकी नींद उड़ा दी क्योंकि फोन पर कोई और नहीं वजीर आजम जुल्फिकार अली भुट्टो थे भुट्टो पूछते हैं
राओ यह कैसे हुआ किसी ने गड़बड़ तो नहीं की हमें इलेक्शन में इतनी ज्यादा सीटें कैसे मिल गई इलेक्शन के नताइएपीजीईटी
होती कि मैं इस मुल्क में जम्हूरियत नहीं चाहता हूं तो मैं इंतखाब नहीं करवाता डेढ़
साल वक्त से पहले वक्त से पहले वक्त से पहले अब एक तरफ भुट्टो थे और दूसरी तरफ आठ
सियासी जमां पर मुश्त मिल यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट एयर मार्शल रिटायर्ड असगर खान की तहरीक इस्तकलाल और मौलाना शाह
अहमद नूरानी की जमीयत लमाए पाकिस्तान अभी इलेक्शन से पहले तो य अपोजिशन बिखरी हुई थी मगर इलेक्शन के ऐलान ने उन्हें मुतह कर
दिया जैसे अभी पीडीएम बनी थी बिल्कुल वैसे ही फजलुल रहमान के वालिद मुफ्ती महमूद ने अपोजिशन जमां पर मुश्त मिल पाकिस्तान
नेशनल अलायंस बनाया था मगर क्या फायदा इक्दर्म और इस्टैब्लिशमेंट की दुआएं और
दवाएं भुट्टो के पास थी जिसकी वजह से भुट्टो पर इल्जाम लगता है कि उन्होंने
लेवल प्लेइंग फील्ड अपने हक में लेवल कर ली हल्का बंदियां न्यूट्रल नहीं थी फिर पीपल्स पार्टी ने सरकारी वसाय का
पूरा-पूरा इस्तेमाल किया सरकारी मुलाज पर दबाव डाला हुक्म ना मानने पर 158 को बतरस
कर दिया जमात इस्लामी के जान मोहम्मद अब्बासी को गगवा करके अपने नुमाइंदे को बिला मुकाबला मुंतखाब करवा दिया और सि एक
नहीं 19 नशिता पर उम्मीदवार ऐसे ही बिला मुकाबला मुंतखाब हुए अपोजिशन ने इल्जाम
लगाया कि उसे मिलने वाले लाखों वोट जाया किए गए बल्कि यह भी कहा कि पीपल्स पार्टी के कारकुन को
असलिहान काबू में रखें इल्जा मात का शोर मचता रहा लेकिन भुट्टो ने किसी को लिफ्ट
नहीं कराई मगर बिलार इन इल्जा मात की शिद्दत वजीर आजम हाउस तक पहुंच ही गई चीफ
इलेक्शन कमिश्नर जस्ट सज्जाद अहमद जान ने कह दिया कि बड़े पैमाने पर धांधली करके मुल्क कौम को नुकसान पहुंचाया गया ऐसी
धांधली हुई जैसे कोई सजी सजाई दुकान को लूट ले जाए फिर क्या था गोया इलेक्शन कमीशन ने ही धांधली पर मोहर लगा दी और फिर
7 मार्च 1977 को होने वाली पोलिंग का पोल 14 मार्च को ही खुल गया तब भुट्टो के
खिलाफ एक जबरदस्त तहरीक शुरू हुई आपको कहा गया है हुक्मरान जमाय का यह ख्याल था और
अंदाजा था कि वह आसानी से इंतखाब जीत जाएंगे अगर हम आसानी से इंतखाब जीतने वाले
थे तो यह फिर अब क्यों चिला रहे हैं
सिविल नाफरमानी का आगाज हो गया बड़े पैमाने पर हंगामे हुए 250 लोगों की जान चली गई 1200 जख्मी हुए साज अफराद कैद हो
गए 700 इमारतें दुकानें दफा तरर और बैंक जल गए कराची और हैदराबाद में कर्फ्यू लगा
आवाम इतने खौफ जदा हो गए कि बैंकों से रकम तक निकलवा ली कौमी आमदन में कमी हो गई खजाना खाली होने लगा सरकारी मुलाज को
तनख्वाह देने के पैसे भी ना बचे और यहां जल्दी पर तेल का काम किया तहरीक इस्तकलाल के असगर खान के एक खत ने उन्होंने आर्मी
चीफ को खत लिख दिया ऐसा खत जो मार्शल लॉ की तरफ ले जाने का पहला कदम साबित
हुआ इलेक्शन बता आपको इलेक्शन हुआ इलेक्शन था जिस इलेक्शन में हर आदमी को जो वजीर
आजम के खिलाफ हुआ और वजीर के खिलाफ हुआ उसको कैद कर दिया जाए इलेक्शन था फ्रॉड था पाकिस्तान में होने वाले पहले इलेक्शन ने
मुल्क तोड़ दिया और दूसरे इलेक्शन ने एक बार फिर मार्शल लॉ लगवा दिया मिस्टर भुट्टो की हुकूमत खत्म हो चुकी है सारे
मुल्क में मार्शल ल नाफ कर दिया गया है यही नहीं इन इतबा बाद में कामयाबी हासिल
करने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो को [संगीत]
बिलखिरिया के तवील साय हैं जिनमें एक इलेक्शन होता है 1985 में इसमें लेवल
प्लेइंग फील्ड का जिक्र ही फजूल है क्योंकि सारी फील्ड ही जया साहब के पास थी इंतखाब गैर जमाती थे मतलब इनमें कोई जमात
हिस्सा नहीं ले सकती सब उम्मीदवार आजाद हैसियत से इलेक्शन लड़े यानी प्लेयर भी अपने और फील्ड भी तो लेवल प्लेइंग फील्ड
किस बत की फिर एक दिन आता है पाकिस्तान का सियासी मंजर नामा यदम बदल जाता है 17
अगस्त 1988 को जियाउल हक का तैयार हादसे का शिकार हुआ वह दुनिया में नहीं रहे और
दुनिया भी बदल गई अब भुट्टो की जानशीन बेनजीर और जियाउल हक के जानशीन नवाज शरीफ आमने सामने हैं बेनजीर अदालत का दरवाजा
खटखटा हैं और इलेक्शन की तारीख ले लेती हैं और फिर वो दिन आ ही जाता है 16 नवंबर
1988 का दिन तकरीबन 9 साल बाद भुट्टो के चाहने वालों को मौका मिलता है कि वो वोट
के जरिए फांसी का बदला ले क्योंकि वही कहते हैं डेमोक्रेसी इज द बेस्ट
[संगीत] रिवेंज फिर मैदान सजा और लेवल प्लेइंग
फील्ड ना देने वाले भी एक्टिव हो गए जैसे भुट्टो के खिलाफ इत्तेहाद बना था वैसे उनकी बेटी के खिलाफ भी एक नए इत्तेहाद ने
जन्म लिया नौ सियासी जमां पर मुश्त हमिल इस्लामी जम्हूर इत्तेहाद बाद में मरहूम जनरल हमीद गुल ने भी तरा किया कि आईजीआई
बनाने में उनका हाथ था आईआई बनाना कौन सी जम्हूरियत स्टेटस को जम्हूरियत की गाड़ी चलाना उस वक्त आप मेरी जगह होते क्या करते
आप बेनजीर की जाली तस्वीरें हेलीकॉप्टरों के जरिए शहरों में फेंकी गई और जैसे आज
इमरान खान यहूदी एजेंट हैं ऐसे उस जमाने में बेनजीर यहूदी एजेंट थी बेनजीर साहिबा
इस्लाम से खारिज हो गई हैं उनका निकाह टूट गया है यही नहीं एक और कदम भी उठाया गया
सदर गुलाम इक खान ने अचानक आइन में तरमीम कर दी कि वोट डालने के लिए शिनाख्त कार्ड लाजिम है लाहौर हाई कोर्ट ने इस हुक्म को
कल अदम करार दिया लेकिन इंतखाब से सिर्फ चार दिन पहले यानी 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हुक्म दे दिया कि शिनाख्त कार्ड
जरूरी है अब 4 दिन में लाखों वोटर्स के शिनाख्त कार्ड कहां से बनते पीपल्स पार्टी दावा करती है कि वो लाखों वोटों से महरूम
हुई क्योंकि उसका ज्यादा वोट बैंक गांव देहात का था यानी यहां भी लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं मिली मगर किस्मत और आवाम की
हमदर्दी बेनजीर के साथ है उनकी पीपल्स पार्टी को 93 जबकि आईजीआई को 54 नशिता
मिलती हैं पाकिस्तान की हामी और वफादार रहूंगी यह दूसरा मौका था कि लेवल प्लेइंग
फील्ड का फार्मूला नाकाम हो गया हां बेन को अपने ही एक बयान की वजह से पंजाब में धज का जरूर पहुंचता है मरकज के बाद सुबाई
इलेक्शन होने वाले थे कि बेनजीर का बयान सामने आ जाता है कि किसी पंजाबी को अपना लीडर कैसे मान ले ये बिल्कुल ऐसे ही था
जैसे उनके वालिद ने 70 के इंतखाब में किसी बंगाली को अपना लीडर मानने से इंकार कर दिया था नवाज शरीफ को सियासत करने का मौका
मिल गया रातों-रात पंजाब की दीवारों पर लिख दिया गया जाग पंजाबी जाग तेरी पगन लग
गया दाग इस एक बयान की वजह से बेनजीर को पंजाब में शिकस्त हो गई जहां वजीर आला
बनते हैं मियां नवाज शरीफ कराची में एक नई कुवत एमक्यूएम 13 सीटों के साथ उभर कर सामने आती है यानी इस इलेक्शन में भी
प्लेइंग फील्ड का फार्मूला नाकाम हो गया मगर कोई बात नहीं अगले इलेक्शन में फिर
ट्राई करेंगे अगले इलेक्शन का मौका आता नहीं
लाया जाता है 6 अगस्त 1990 को गुलाम इा खान ने बेनजीर पर करप्शन का इल्जाम लगाकर
उनकी हुकूमत का खात्मा कर दिया और मुल्क में एक बार फिर नए इलेक्शन होते हैं और
लेवल प्लेइंग फील्ड का स्टाइल भी बदल गया इस बार पैसा चला और खूब चला और जीते मियां
मोहम्मद नवाज शरीफ कहा जाता है उन्हें जितवा के लिए कौमी खजाने से 144 करोड़
रुपए निकाले गए और ये मैं नहीं कह रहा सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है अजगर खान केस ये वही साहब हैं जो 1970 में
भुट्टो के खिलाफ एक मुहिम का अहम हिस्सा थे जिनके खत के बाद जियाउल हक ने मार्शल लॉ लगा दिया था बहरहाल 1990 के इलेक्शन
में जो कुछ हुआ 6 साल बाद 1996 में वो सारा कच्चा चिट्टा लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं और फैसला 2012 में आता है
यानी 16 साल बाद और पता चलता है कि जनरल मिर्जा असलम बेग और जनरल असद दुरानी के कहने पर कौमी खजाने से 144 करोड़ रुपए
फराह किए गए जिनमें से 6 करोड़ सियासत दानों में बांटे गए दिस वाज द फंड्स वार
रिलेटेड डिस्ट्रीब्यूटर बाय द आईएसआई और मिस्टर यूसुफ एडवोकेट और यूं लेवल प्लेइंग
फील्ड के गेम में एक नया कैरेक्टर दाखिल होता है हॉर्स ट्रेडिंग मगर अफसोस यह राज
12 साल बाद अफशा हुए मिर्जा लब एक वजाहत पेश करने लगे कि उन्होंने तो सदर गुलाम इाक खान के कहने पर किया था क्योंकि
सुप्रीम कमांडर वही थे ये लॉफुल कमांड था एक लॉफुल अथॉरिटी के
[संगीत] हाथों उस वक्त के लोगों को शायद लेवल प्लेइंग फील्ड समझने में मुश्किल हुई हो
लेकिन आज 30 साल बाद जब हम 1990 के इलेक्शन पर नजर डालते हैं तो मतला अबरा
आलू नहीं बल्कि बिल्कुल साफ नजर आता है 1970 और 88 में नाकामी के बाद 1990 में जो
लेवल प्लेइंग फील्ड तैयार की गई व तो लाजवाब थी ना सिर्फ पैसे बल्कि ओहद का भी जोर दिखाया गया इलेक्शन करवाने के लिए
निगरा वजीर आजम उन्हें बनाया गया जो 1988 के इलेक्शन में बेनजीर के खिलाफ थे यानी
आईजीआई के सरब गुलाम मुस्तफा जतोग सदर वही थे जिन्होंने करप्शन के इल्जाम में बेनजीर की हुकूमत गिराई थी यानी गुलाम इसहाक खान
सिंध में निगरा वजीर आला भी बेनजीर मुखालिफ लगाया गया यानी जाम सादिक को बल्कि आपको सुनकर हैरत होगी कि जाम सादी
खुद इस इलेक्शन में वजीर आला के उम्मीदवार थे और फिर बेनजीर हुकूमत गिराने वाले गुलाम इा खान के दामाद इरफान उल्ला मरवत
सिंध में वजीरे दाखिला बनाए गए और यूं सारी फील्ड बेनजीर के खिलाफ सेट थी फिर 24
अक्टूबर 1990 का दिन आता है इलेक्शन का नतीजा 1988 से बिल्कुल मुख्तलिफ होता है
लेवल प्लेइंग फील्ड का जादू चल जाता है 105 निशि तों के साथ नवाज शरीफ का पलड़ा
भारी है और बेनजीर का पाकिस्तान जम्हूर इत्तेहाद सिर्फ 45 निशि स्त ले पाता है और
यूं नवाज शरीफ पहली बार रे आजम बन जाते
हैं हम लोग आरिफ अलवी और ममनून हुसैन जैसे सदूर का बहुत मजाक उड़ाते हैं कि वह कुछ कर नहीं सकते डमी सदर हैं लेकिन आज का सदर
पाकिस्तान इसलिए लाचार है क्योंकि वो कल बहुत ताकतवर था जिसे कहते हैं जान जो थी
वो देव की उस तोते में थी जो प्रेसिडेंसी में था मैं प्रेसिडेंट बन के मैंने वो तोते की जिसे कहते हैं ना गिची मरोड़ दी
सारे पावर्स पार्लियामेंट को बगैर पार्लिमेंट के मांगे मैंने दे
दिए लेवल प्लेइंग फील्ड के अगले मैदान में जाने से पहले जरा बैकग्राउंड जानना बहुत जरूरी है बेनजीर की हुकूमत को चलता करने
वाले सद्र गुलाम इक खान को 3 साल बाद नवाज शरीफ भी टकने लगे जनवरी 1993 आया आर्मी
चीफ आसिफ नवाज जंजुआ अचानक हार्ट अटैक की वजह से इंतकाल कर गए सर पर दस्ते शफकत
बरकरार रहे इसीलिए नवाज शरीफ चाहते थे कि कोर कमांडर लाहौर जनरल मोहम्मद अशरफ को
कायम मकाम आर्मी चीफ लगा दिया जाए मगर गुलाम इक खान ऐसा नहीं होने देते उन्होंने अपने इख्तियार इस्तेमाल किए और आर्मी चीफ
बना दिया जनरल अब्दुल वहीद काकड़ को नवाज शरीफ ने भी जबान को लगाम नहीं दी रेडियो
और टीवी पर लाइव कह दिया मैं डिक्टेशन नहीं लूंगा और साथ ही धमकी देते हैं कि वो
आठवीं तरमीम करके सद्र के इख्तियार ही खत्म कर देंगे अब गुलाम इाक खान के पास एक
ही रास्ता था कि इससे पहले कि उन पर हमला हो वो पहले हमला कर द अब ऐसा भी नहीं कि
बेनजीर हमेशा रिसीविंग एंड पर ही हो उनका टाइम भी आ ही गया बेनजीर ने मौके का फायदा
उठाया और नवाज सरकार को गिराने के लिए गुलाम इसहाक खान से हाथ मिला लिया बल्कि एक कदम आगे बढ़कर अपोजिशन के इस्तीफे तक
जमा करा दिए यहां गुलाम इक खान ने वही पुराना राग चलाया करप्शन आइन की खिलाफ वर्जी और मुसल्ला फाज की अथॉरिटी को
नुकसान पहुंचाने का इल्जाम लगाया और नवाज शरीफ की हुकूमत का खात्मा कर दिया मगर मियां साहब सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं
विजारत उजमा बहाल भी हो जाती है लेकिन एक बड़े सियासी बहरा के बाद आता है काकड़
फार्मूला सदर और वजीर आजम दोनों के ओहदे चले गए और फिर आता है एक और इलेक्शन अब
यहां लेवल प्लेइंग फील्ड किसके हक में होगी आप समझ गए होंगे जी हां आसिफ जरदारी
कैद से आजाद कर दिए गए बल्कि उन्हें निगरा वजीर भी बना दिया गया अब हवाओं का रुख बेनजीर की तरफ है आई जेआईसी काजी हुसैन
अहमद ने भी नवाज शरीफ का साथ छोड़ दिया यहां तक कि उनकी मुस्लिम लीग भी टूट गई एक बनी मुस्लिम लीग चट्ठा ग्रुप और दूसरी
मुस्लिम लीग नवाज जैसे आज इमरान खान से बल्ले का निशान लेने की बातें हो रही हैं वैसे ही 1993 में नवाज शरीफ से साइकिल का
निशान छीन लिया गया और उन्हें मिला नया निशान शेर जो उस वक्त नवाज शरीफ के लिए
बड़ा धज का था क्योंकि साइकिल उनकी पुरानी पहचान थी बहरहाल ऐसी लेवल प्लेइंग फील्ड के साथ 6 अक्टूबर 1993 को इलेक्शन होते
हैं और हैरत की बात यह है कि इस सबके बावजूद बेनजीर बहुत बड़ी अक्सिया हासिल नहीं कर पाई उन्हें 65 सीटें मिली और
मुस्लिम लीग नून को 56 पाकिस्तान में वैसे भी सिंपैथी का वोट तो मिलता ही है शायद इस बार आवाम की हमदर्द यां नवाज शरीफ के साथ
थी बहरहाल हुकूमत बेनजीर नहीं बनाई चट्ठा ग्रुप और आजाद अरकान के साथ मिलकर और उन्होंने आते ही पहला सियासी पत्ता फेंका
अपनी ही पार्टी के रहनुमा फारूक लगार को सदर बना दिया वो अलग बात है कि आखिर में उनसे भी धोखा ही मिला लेकिन उसके हाथों से
58 टूबी की तलवार नहीं ली फिर एक वाकया पेश आता है 20 सितंबर 1996 वजीरे आ आजम
बेनजीर के सगे भाई मुर्तजा भुट्टो एक पुलिस मुकाबले में कत्ल कर दिए जाते हैं तासुर पैदा किया जाता है कि जो वजीर आजम
अपने भाई को ना बचा सकी वो आम आदमी का तहफ्फुज कैसे करेगी बेनजीर तो इस कत्ल का इल्जाम फारूक लगार पर भी लगाती हैं तो
आपको लग कि जो प्रेसिडेंट थे मुर्तजा भुट्टो के एसनेस के पीछे उनका हाथ था जी मैं समझती हूं कि डायरेक्टली या
इनडायरेक्टली वही कातिलों को तसल्ली दे सकता था दूसरी तरफ आसिफ कातिल का नारा भी
बुलंद होता है बेनजीर ने तस्लीम किया कि उनके भाई और शौहर में दूरियां थी मगर इसका
मतलब ये नहीं कि आसिफ कातिल है मुर्तजा को बताया गया था उसकी बीवी ने कि जरदारी भुट्टो का नाम खराब कर रहा है उसको इतना
ब्रेन वाशिंग किया गया था कि वो समझते थे कि आसिफ हमें बदनाम कर रहे थे हालात
बिगड़ते चले जाते हैं यहां तक कि अमेरका का बयान भी आ जाता है कि पाकिस्तान में कोई उसका फेवरेट नहीं हर रहनुमा काबिले
कबूल होगा समझे गिरती हुई दीवार को एक धक्का और देने का इजाजत नामा आ गया और फिर
आती है 5 नवंबर 1996 की रात बेनजीर बेखबर सो रही थी रात 1:30 बजे वजीर आजम हाउस की
फैक्स मशीन की घंटी बजती है और यह घंटी असल में खतरे की घंटी थी फैक्स मशीन से जो
पर्चा निकला वह ऐवा सद्र का हुकमनामा था बेनजीर को विजारत उजमा के ओहदे से हटा
दिया गया है और असेंबली तोड़ दी गई है और फिर मुल्क बढ़ता है अगले इंतखाब की
तरफ लेवल प्लेइंग फील्ड ना देने वाले अब अपने तजब से सीखते जा रहे हैं और हर बार
पहले से बेहतर प्लानिंग तैयार करते हैं खोड़े को ले आओ उसको दूध पिलाओ खोड़े को ले आओ जो दूध पीता है जो मामलेट खाता है
जो शहद खाता है सुर्ख लिबास सफेद स्कार खतरे और अम्न
के अलामत रंग जबतन की हुई बेनजीर किन घोड़ों का जिक्र कर रही हैं पीटीवी के साबिक डायरेक्टर न्यूज़ खालिक
सरगासन के वजीर आजम हाउस छोड़ जाने के बाद आए निगरा वजीर आजम मलिक मेराज खालिद
उन्होंने उस वक्त के डायरेक्टर न्यूज़ पीटीवी हबीबुल्ला फारूकी को हुक्म दिया कि वजीर आजम हाउस में मौजूद घोड़ों के अस्तबल
शूट करें जिन्होंने इस काम के लिए खालिक सरगामी हाउस भे जा जहां महंगे तरीन घोड़ों का एक अस्तबल था पता लगा कि एक घोड़ा ऐसा
भी है जो ₹ करोड़ का है मुलाज मीन ने बताया यह घोड़े दूध पीते हैं शहद खाते हैं
सेब खाते हैं और उनके अस्तबल में एसी भी लगे हुए हैं और यह सब दिखाने का हुक्म उस
वक्त के निगरा वजीर आजम दे रहे हैं जिनका काम यह नहीं इलेक्शन कराना है मगर वो निकल पड़े मिशन एहते साब पर या यूं कह लीजिए कि
लेवल प्लेइंग फील्ड फॉर्मूले पर तो बेनजीर की पिछली हुकूमत बदनाम होती चली गई फिर गिरफ्तारियां का आगाज हुआ कई अहम रहनुमा
जेल गए और इन्हें तो आप जानते ही होंगे रहमान मलिक उस वक्त एफ ईए के डायरेक्टर जनरल थे अपने ऑफिस में काम में मसरूफ थे
कि अचानक दरवाजा खुला और अपने ही मातहतों ने गिरफ्तार कर लिया एतिसालत गया और
बेनजीर के हुकूमत इत्तेहाद हों तक पहुंच गया मौलाना फजलुल रहमान पर इल्जाम लगा कि उन्होंने डीजल के परमिट में कमीशन खाया है
और यह ताना आज तक उन्हें मिलता है बहरहाल 1997 के इलेक्शन से पहले बेनजीर इंतखाब
मुहिम में नहीं बल्कि एहते साब से बचने के लिए अपने दिफाई इलेक्शन में क्या होने
वाला है उन्हें शायद अंदाजा भी नहीं था जमात इस्लामी इलेक्शन का बॉयकॉट कर चुकी
थी नवाज शरीफ का रास्ता साफ था मगर ठहर यह कौन आया कि अचानक नवाज शरीफ घबरा
गए इतना ज्यादा घबरा गए कि उसे इत्तेहाद करने की दावत दे दी सिर्फ यही नहीं 20
निशि भी ऑफर कर दी मगर उस शख्स में इतनी अकड़ थी कि नवाज शरीफ को धुत का दिया
बल्कि उल्टा उन पर करप्शन के इल्जा मात लगा दिए वोह कोई और नहीं वर्ल्ड कप जीत कर
आने वाला इमरान न खान था जी हां यह था इमरान खान का पहला इलेक्शन और तब से उनका
यही मंशोर था कि करप्ट को लटकाना है वो बात अलग है कि खुद उनकी हुकूमत में कोई
करप्ट नहीं लटकाया गया इमरान खान ने अपनी इलेक्शन कैंपेन का आगाज इस नारे के साथ किया नए चेहरे नया निजाम इक्दर्म क्या आप
जानते हैं कि उस वक्त इमरान खान का इंतखाब निशान क्या था जी हां चिराग इस चिराग को
बहुत अरसे तक रगड़ा गया फिर जाकर इससे चिन निकला बहरहाल 1997 के इलेक्शन में इमरान
खान नवाज शरीफ के हल्के में उनके मद्दे मुकाबिल खड़े हुए नवाज शरीफ इमरान खान के खिलाफ बोलते भी तो क्या पहला इलेक्शन था
करप्शन पर तो बात ही नहीं हो सकती थी लिहाजा उंगली उठाई करेक्टर पर यह ऐसा केस
था जिस पर इमरान खान लब कुशा ना हुए फिर जमाय मा से शादी की वजह से मौलाना फजलुल रहमान ने उन्हें यहूदी एजेंट करार दिया
बहरहाल इमरान खान को नजर आने लगा कि वह इलेक्शन हार जाएंगे उन्होंने बॉयकॉट का
सोचा मगर पार्टी रहनुमाओं के इख्तिलाफ की वजह से इमरान खान इलेक्शन में कूद पड़े जैसे भी हो सके आप पोलिंग स्टेशन पहुंचे
और चराग प मोर लगाए इंतखाब का दिन आ जाता है 3 फरवरी 1997 रमजान के दिन थे पोलिंग
के अमले को जबरदस्ती इफ्तारी करने भेज दिया गया और टप्पे लगना शुरू हो गए यह मैं नहीं कह रहा इमरान खान अपनी किताब में
लिखते हैं शायद रमजान की वजह से टर्न आउट इंतिहा कम सिर्फ 36.1 फस था मगर नवाज शरीफ
के लिए यहां बहुत बड़ी खुशखबरी थी उनकी जमात ने क्लीन स्वीप कर लिया था यानी दो
तई अक्सर असेंबली की 203 में से 137 निशस्ता नून लीग को मिल गई यानी पिछले
इलेक्शन में 73 के मुकाबले में 137 ये बहुत बड़ी जीत थी पीपल्स पार्टी का गिराव
बहुत नीचे गया बेनजीर के पास सीटें 9 से कम होकर सिर्फ 18 रह गई इमरान खान कोई सीट
नहीं जीत सके और उन्होंने बेनजीर के साथ मिलकर नवाज शरीफ पर धान के इल्जा मात लगाना शुरू कर दिए बहरहाल अब नवाज शरीफ के
पास बड़ी अक्सर त थी उन्हें कानून साजी में कोई मुश्किल नहीं थी इसलिए उन्होंने पहला वार किया सदर की कुर्सी पर उन्होंने
582 बी का खात्मा कर दिया यानी सद्र के पास वजीर आजम को घर भेजने का इख्तियार
खत्म हो गया नवाज शरीफ का अगला हद था अपनी सबसे बड़ी मुखालिफ बेनजीर से
निमटूरी और जरदारी के पीछे लगा दिया जरदारी जेल गए और बेनजीर तीनों बच्चों समेत मुल्क से बाहर फिर एक और काम हो गया
जस्टिस सज्जाद अली शाह नवाज शरीफ के खिलाफ तौहीन अदालत का फैसला सुनाने जा ही रहे थे कि नून लीग ने सुप्रीम कोर्ट पर हमला कर
दिया इसी तनाज की वजह से फारूक लखारी मुस्ताफी हो गए और रफीक तारा नए सद्र बन अब ओवर कॉन्फिडेंट नवाज शरीफ अगले महास की
जानिब बढ़े इस बात से बेखबर कि वह आग से खेलने जा रहे हैं क्योंकि उनका अगला वार
था कोई और नहीं मुसल्ला अवाज के सरब जनरल परवेज मुशर्रफ जब आर्मी चीफ का जहाज फजा
में था वह सफर में थे तब नवाज शरीफ ने उन्हें रुखसत करने की कोशिश की मगर यह वार
उल्टा पड़ गया परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ ही नहीं पूरा सिस्टम ही लपेट दिया डियर ब्रदर्स एंड सिस्टर्स योर आर्म फोर्सेस
हैव नेवर एंड शैल नेवर लेट यू डाउन इंशा [संगीत]
अल्लाह मुल्क 21वीं सदी में दाखिल हो चुका था अब इसे पहले की तरह नहीं चलाया जा सकता
था इसलिए 2002 में आम इंतखाब करवाने पड़े जिन्हें देखकर 1925 के गैर जमाती इलेक्शन
की याद आ जाती है खैर यह इंतखाब गैर जमाती तो नहीं थे लेकिन यूं कह लें जमां के अपने
ही दरमियान थे बेनजीर खुद साख जिला वतन थी नवाज शरीफ भी सऊदिया की जमानत पर जान बचाकर लंदन में थे तो उनकी पार्टी के
खिलाड़ियों के जरिए नई पार्टियां बनाई गई पूरी फील्ड ही सेट थी कोई लेवल क्या करता
नून लीग से भागे हुए खिलाड़ियों से काफ लीग बनाई गई और [संगीत]
इक्दर्म ने काफ लीग से आंखें फेर ली और अमेरिका ने मुशर्रफ से अब सदर जॉर्ज बुश
चाहते हैं कि मुशर्रफ ओहदा छोड़ दे अब परवेज मुशर्रफ तन्हा महसूस कर रहे थे और यहीं पर पर 90 की दहाई के वो किरदार मिल
जाते हैं जिनका काम था एक दूसरे पर कीचड़ उछालना मुखालिफत करना गलीज इल्जा मात लगाना और एक दूसरे पर मुकद्दमा चलाना
मिसाक जम हूरिया पर दस्तखत होते हैं मगर बेनजीर अचानक यूटर्न ले लेती हैं मुशर्रफ
से दुबई में खुफिया मुलाकात करती हैं इस पर नवाज शरीफ चड़ जाते हैं क्योंकि यह मिसाक जमू जियत की खिलाफ वर्जी थी अब आप
सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों हुआ क्योंकि बेनजीर मुशर्रफ से चाहती थी कि वो 1985 से
अब तक के उन पर आसिफ जरदारी पर बनाए गए तमाम मुकदमा खत्म कर दें बदले में मुशर्रफ
बावर्दी सदर का अहदा कबूल करने का कह रहे थे बिलखिरिया
सारे केसेस मुआफ इधर नवाज शरीफ सऊदी अरब से दबाव डलवा करर वतन लौटते हैं लेवल
प्लेइंग फील्ड फॉर्मूले के तहत बेनजीर ही विजारत उजमा की कुर्सी की हकदार थी मगर फिर वह हुआ जो किसी ने नहीं सोचा था
बेनजीर चल बसी और हमदर्दी में पड़ने वाले वोट के
जरिए आसिफ जरदारी इक्त में आ गए चौधरी शुजात अपनी किताब में लिखते हैं कि पीपल्स
पार्टी मुशर्रफ से डील के नतीजे में
इक्दर्म देखने को मिला कि कोई हुकूमत अपनी मुद्दत
पूरी कर रही है लेकिन याद रखें उस वक्त भी हुकूमत मुद्दत पूरी कर रही थी मगर वो रा
आजम इस नेमत से आज तक महरूम है पीपी गवर्नमेंट करप्शन के कई इल्जा मात भी अपने
साथ ले जा रही है मगर कोई नहीं यह पाकिस्तान का वो दौर था जब कहा जा सकता था
कि जम्हूरियत में सब चलता है खैर 2013 के इलेक्शन में लेवल प्लेइंग फील्ड का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था आज से ठीक 10 साल
पहले पीपल्स पार्टी और नून लीगिया के नारों के बीच एक नया नारा बुलंद होता है
तब्दीली आ गई है यह नारा था तो पाकिस्तान के लिए मगर तब्दीली इमरान खान की जमात में
आ रही थी मुस्लिम लीग और पीपल्स पार्टी के सीनियर रहनुमा इमरान खान का हाथ थाम रहे
थे यहां मुझे इमरान खान के पहले इलेक्शन का बयानिहान आ गया खैर छोड़िए नवाज शरीफ और जरदारी के अदबारी आवाम ने देखा अब उनके
सामने नया चेहरा इमरान खान ही था और उनके बड़े-बड़े जलसों ने पूरे मुल्क को अपने
कैरिज्मा में जकड़ रखा था और फिर इलेक्शन से सिर्फ 4 दिन पहले यानी 7 मई को लाहौर
जलसे में इमरान खान कंटेनर से गिरकर जख्मी हो जाते हैं जख्मी हालत में वोट मांगना यानी सिंपैथी का वोट भी आपने फैसला कि
कैसे चलते रहना या आपने एक नया पाकिस्तान बनाना इमरान खान की जीत पक्की लग रही थी
मगर लेवल प्लेइंग फील्ड ना देने वालों को कोई और ही मंजूर था यह वो दहाई थी जब पाकिस्तान धमाकों से गूंज रहा था सड़कें
लहू में डूबी हुई थी मुल्क में शिद्दत पसंदो का जोर था यह शिद्दत पसंद किसकी पैदावार थी अगर आप यह नहीं जानते तो चले
छोड़ें बस समझ ले कि लेवल प्लेइंग फील्ड उसे ना मिली जिसने सबक याद ना किया
बिलखिरिया 2013 का दिन आ जाता है वोटर टर्न आउट तारीख में सबसे ज्यादा रहा
पाकिस्तान की आधी आबादी वोट कास्ट करती है मगर शाम के बाद दरवाजे बंद हो जाते हैं
जिनके पीछे इलेक्शन के नताइवस्पेशल
167 सीटें जीतकर पहले नंबर पर आ गए पीपल्स पार्टी 42 सीटों के साथ दूसरे और तहरीक
इंसाफ 35 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर थी आसिफ जरदारी ने इलेक्शन को कबूल कर लिया नली का इल्जाम तो लगाया मगर अपोजिशन लीडर
अपना बनाया और कहा कि सिस्टम में रहकर जंग लड़ेंगे मगर इमरान खान को यह सब हजम नहीं
हुआ और 15 अगस्त 2014 को ताहिरुल कादरी का हाथ धा मेंे इस्लामाबाद में धरना देकर बैठ
गए यहां से शुरू हुई पाकिस्तान में एक नई सियासत हुकूमत ने धरना खत्म कराने के लिए
एड़ी चोटी का जोर लगा लिया उधर शहबाज शरीफ हफ्ते में तीन बार आर्मी चीफ से मिलते हैं तो इधर इमरान खान कह रहे थे अंपायर की
उंगली उठने वाली है और इसी दौरान सितंबर में इलेक्शन कमीशन तरा करता है कि इंतखाब में आर्टिकल 62 और 63 6 का भरपूर इतक नहीं
हो सका मतलब इलेक्शन से पहले उम्मीदवारों की जांच पड़ताल ठीक से नहीं की गई मगर फिर
एक रिपोर्ट अदालती कमीशन की आती है जो धांधली के सारे इल्जा मात मुस्तर कर देती है कहा गया धांधली नहीं हुई हां बद इंतजाम
हुई है इधर यह सारी बहस चल रही थी और उधर इमरान खान का गर्मियों में शुरू होने वाला धरना दिसंबर की सर्द रातों में दाखिल हो
गया अंपायर की उंगली थी कि उठी नहीं रही थी यहां तक के दिसंबर के वस्त में सानेहा
एपीएस हो जाता है इमरान खान ना तो खत्म कर देते हैं मगर नवाज शरीफ का पीछा नहीं छोड़ते और फिर किस्मत इमरान खान को एक और
मौका देती है 3 अप्रैल 2016 को पनामा पेपर्स की रिपोर्ट सामने आती है इसमें
नवाज शरीफ का नाम तो नहीं होता मगर करप्शन के ताने बाने खुलते चले जाते हैं मुख्तसर यह कि जालिया कामे पर ही सही मगर नवाज
शरीफ को ना अहल कर दिया जाता है क्यों निकाला मुझे क्यों निकाला मैं पूछना चाहता हूं क्यों
निकाला उनके खिलाफ तीन रेफरेंसेस बनाए जाते हैं और फिर वो अपनी बेटी समेत जेल
चले जाते हैं इन केसेस की तफसील और स्पेशल रिलीफ पर हमने अपने एक और youtube0 पर ये वीडियो बना रखी है आप जरूर
देखिएगा खैर नवाज शरीफ की पार्टी ने टेन्योर तो मुकम्मल किया मगर लेवल प्लेइंग फील्ड उनके हाथों से निकल रही
[संगीत] थी नए इलेक्शन का वक्त आ जाता है जिसे याद
करें तो लगता है जैसे इलेक्शन 204 की बात हो रही हो बस किरदार बदल गए हैं जैसे इलेक्शन 2018 में नवाज शरीफ ना अहल थे आज
इमरान खान ना अहल है जैसे इलेक्शन 2018 में नवाज शरीफ जेल में थे आज इमरान खान
जेल में है जैसे इलेक्शन 2018 में नवाज शरीफ के खानदान पर मुकद्दमा थे आज इमरान खान की अहलिया पर है 2018 में एहत साब
अदालत नवाज शरीफ पर मुकद्दमा की समात कर रही थी तो आज इमरान खान के खिलाफ भी यही
एहते साब अदालत केस सुन रही है इलेक्शन 2018 से पहले नवाज शरीफ ने एस्टेब्लिशमेंट के खिलाफ वोट को इज्जत दो मुहीम शुरू की
इमरान खान ने भी हुकूमत के खात्मे के बाद इस्टैब्लिशमेंट के खिलाफ अमरिक गुलामी नाम मंसूर मुहिम चलाई 2018 में एक ऐसा वक्त भी
आया कि टीवी पर नवाज शरीफ का नाम लेने पर पाबंदी लग गई आज टीवी पर इमरान खान का नाम लिखने या लेने पर पाबंदी है हां एक फर्क
जरूर है नवाज शरीफ ने कुछ ही वक्त जेल में गुजारा और बाहर जाने की जिद पकड़ ली लेकिन इमरान खान जाने नहीं जाता मुल्क से बाहर
क्योंकि मैंने कोई बाहर मेरे पैसे बैंक अकाउंट कुछ नहीं पड़े हुए इलेक्शन आ गए सिर्फ पाच सालों में पाकिस्तान की सियासत
का नक्शा बदल चुका था अल्ताफ हुसैन पर पाबंदी लगाकर उनकी सियासत खत्म कर दी गई थी पंजाब में नवाज शरीफ का जोर तोड़ दिया
गया था कराची में एम क्यूएम के वोट काटने के लिए पाक सरजमीन पार्टी आ चुकी थी तो पंजाब में नून लीग का वोट खाने के लिए
तहरीक लब्बैक पाकिस्तान लॉन्च हो चुकी थी और पीपल्स पार्टी वो अब सिर्फ सिं तक
महदूद होकर रह गई थी और पीपल्स पार्टी और मुस्लिम लीग नून में एस्टेब्लिशमेंट की आशीर्वाद रखने वाले सारे लोग तहरीक इंसाफ
पे थे फिर आ गया 25 जुलाई 2018 का दिन वोट डाले गए और शाम 5 बजे के बाद नताइएपीजीईटी
ताइज का सिलसिला मुकम्मल तौर पर रुक गया रिपोर्टर्स पोलिंग स्टेशंस के बाहर खड़े
थे और खबरें अंदर रात 12:00 बजे यह खबर मिलती है कि रिजल्ट्स मैनेजमेंट सिस्टम बैठ गया बहुत तवील इंतजार के बाद ऐलान
किया गया कि 126 सीटें रखने वाली नून लीग सिर्फ 64 सीटें हासिल कर सकी है और 2013
में 28 सीटें जीतने वाली तहरीक इंसाफ अब 115 निशत जीत गई थी इमरान खान विजारत उजमा
तक पहुंच ही [संगीत] गए
लेकिन 2022 के आगाज में ही अंदाजा हो गया कि लेवल प्लेइंग फील्ड का जादू चलाने वाले
उनसे रुख मोड़ बैठे हैं उन्हीं का निजाम उनके खिलाफ हो गया और फिर 10 अप्रैल 2022
को रात 12 बजे अचानक अदालतें खुल जाती हैं असेंबली में तहरीक अदम एतमाद में इमरान खान को चलता कर दिया गया तहरीक इंसाफ ने
असेंबली से इस्तीफे दिए और सड़कों पर आ गई आज क्या सूरते हाल है ये तो आप देख ही रहे हैं मियां साह वतन वापस आ चुके हैं उन्हीं
जजेस ने उनके केसेस खत्म कर दिए हैं जिन्होंने सजाएं दी थी निगरा हुकूमत की तवज्जो भी हमेशा की तरह इलेक्शन पर कम और
एहते साब पर ज्यादा है इमरान खान का ट्रायल चल रहा है और नवाज शरीफ को प्रोटोकॉल मिल रहा है सहाफी हामिद मीर सही
कह रहे हैं पाकिस्तान में किसी इलेक्शन में लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं दी गई 204
में भी नहीं दी जा रही जब सवाल हुआ लेवल प्लेइंग फील्ड कैसे मिलेगी जवाब मिला सुप्रीम कोर्ट चाहे तो हो सकता है वो कैसे
2012 में असगर खान केस के फैसले में लिखा गया था कि ब्यूरोक्रेट्स हुकूमत के गैर
आईनी एकामा मानने के पाबंद नहीं आईएसआई एमआई और आईबी को सियासत में
मदाखू से गुरेज करना चाहिए सवाल यह है कि कोई सवाल ही तो
नहीं
No comments:
Post a Comment